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सेवा समर्पण और त्याग बना डीएम मोनिका का अलंकरण : डीएम मोनिका के दो वर्षो के कार्य में अतुल्य निराले ठाठ

बी.एस.परिहार/कुंवर दिवाकर सिंह

बहराइच। जिले की धीर गंभीर सहज कलेक्टर मोनिका रानी अपने शानदार सेवाकाल के दो वर्ष पूरी कर चुकी है। इन दो वर्षों में लोक हितार्थ कार्यों को गागर में सागर भरकर अपने कीर्ति को शिखारोही के सोपान के मुकाम पर परचम लहराया। इन्होंने इन दो वर्षाें में बहराइच जिले को एक नई पहचान दिलाई। जिसके वजह से इन्हें प्रधानमंत्री पुरूस्कार से नवाजा गया।

गंभीर और गरिमामयी अनुभव की व्यक्तिगत प्रमाणिकताओं के साथ अपने विम्बों और प्रतीकों से अर्थ ध्वनित करती रही। यही स्वर्णिमकाल था मोनिका रानी का सामाजिक अनुभव के। इन्हें कर्मयोग से सफल आरोही नायिका में शुमार किया। पिछड़े और विकास बीमारू जिले में पहचान रखने वाला बहराइच राष्ट्रीय पटल पर स्थापित हो चुका है। जिसकी शिल्पी है डीएम मोनिका रानी। इनके सहज सरस कार्य विधा पर चक्षुपात से सम्पूर्णता और दृश्य विस्तार जरूर देती है।

इन दो वर्षों के उल्कापात चक्रों के बीच अंतराल में मोनिका रानी ने स्थितियों-परिस्थितियों को अनुभव में परिवर्तित किया। यर्थात् की गुरूता प्रदान की। अतीत का अहं दिया और समाजोन्मुखी दृष्टि दी। इनके अनुभव की प्रमाणिकता वाले दुरूह कार्यों में अचानक सांकेंकिकता प्रतीक उभरे तो लोगों ने उन्हें डीएम मोनिका रानी के शिल्प का चमत्कार माना। निःसंदेह मोनिका रानी ने लोक हितार्थ में अविरल विकास धारा प्रवाहित करने में गंभीर गरिमा के साथ-साथ मनः काल में गंभीर और गरिमा के साथ पटकथा का सृजन किया। वृहत्तर संदर्भों का समावेश किया। सृजन के धरातल पर प्रभावशाली रूप में अभिव्यक्त हो सका। इतना ही नहीं पराम्परिक जीवन में इनके लिए अवकाश नहीं होता है।

यू ंतो मोनिका रानी ने जिलाधीश से पूर्व शिक्षक के रूप में जनसेवा की पाली प्रारम्भ की थी। शिक्षक रहते हुए भी इन्होंने अपनी प्रतिबद्धता और दृढ़ संकल्प का परित्याग नहीं किया। जिसका सुखद परिणाम भारतीय प्रशासनिक सेवा का मुकाम हासिल किया।

डीएम ने गागर में भरा सागर

मोनिका रानी नोयडा एथोरिटी से स्थानान्तरित होकर जनपद बहराइच का प्रथम बार जिले का जिलाधीश के कर्तव्यों का सफर शुरू किया। मोनिका रानी ने सामाजिक, राजनीतिक और भौगोलिक परिस्थितियों का अध्यन कर विकास के खाके को लक्ष्मण रेखा का रूप दिया। सबसे बड़ी चुनौती उस विकास खाके को धरातल पर स्थापित करने की थी। जिसे बड़े शिद्दत, संजीदगी, समर्पण और सूझ बूझ से मातहत विभागो सांमजस्य स्थापित किया। जिससे लक्षित मुकाम तक पहुंचाने में काफी हद तक कामयाब रही मोनिका रानी ने सबसे अधिक ध्यान ग्रामीण विकास पर केन्द्रित किया। गांवों के मानचित्र लेकर मौके की जरूरत और हालात् का मूल्यांकन कर शासन की महत्वाकांक्षी योजनाओं को अमली जामा पहनाया।

डीएम के खेल में भेड़िये हुए फेल

जनपद में एक वक्त भेड़ियों का भी आया जिसे लोग कब तक याद रखेगे कुछ पक्का नहीं। आदमखोर भेड़ियों के हमलों से त्राहिमाम् मच गया। कुछ को भेड़ियों ने निवाला बनाया। कुछ घायल हुए। चारो ओर भय और मातम का माहौल। भेड़ियों का खूनी तांडव सबाव पर। भेड़ियों के हमले थमने का नाम नहीं ले रहे थे। इन आतंकी मानव भक्षी भेड़ियों की गूंज भारत ही नहीं तमाम देशों तक पहुंची। उन दिन हर टी.वी.चैनल और अखबारों की मुख्य खबर और हेडिग बहराइच के भेड़ियों को लेकर होती रहती थी। ऐसे दुरूह समय मंेज ब लोग रात घरों से नहीं निकल रहे थे। तब वीरागना मोनिका रानी ने प्रभावित क्षेत्रों में मोर्चा सम्हाल कर रात-रात भ्रमण करती रही। तब जाकर रणनीति के तहत भेड़ियों के कुनवो से मुक्त करा पाई।

डीएम के स्वाभाव से सभी कायल

मोनिका रानी का अपना अनोखा एक अंदाज है। इनकी मेहनत, समर्पण, त्याग, मृदभाषी उपमाए उनके अन्तःकरण को अंलकृत करती है। हरियाणवी अक्खड मातृ भाषा होने के बावजूद भी इनकी भाषा और सम्बोधन में मधु जैसी मिठास आभास होता है। सबकी गौर से सुनकर अपनी बात रखने की कला लोगों को आत्मविभोर कर देती है। इन्हें कभी गुस्से में किसी ने देखा नहीं।

पता नहीं कब कहां हो जाये डीएम का आगाज

डीएम मोनिका रानी के कार्य शैली का मापन करना आसान नहीं है। दफ्तर में बैठे-बैठे आवास से निकलते-निकलते अचानक बगैर किसी पूर्व नियोजित योजना के वे तहसीलों, ब्लाकों, थानों, गांवों में व्यवस्था की नब्ज टटोलने निकल पड़ती है। जिससे मातहतों के बीच भय बना रहता है। इस कार्यविधा और भय के कारण प्रशासनिक कार्य क्षमता का विकास होता है। इनकी कार्यविधा इतनी निराली है कि जिसमें न विषमताओं का अम्बार है और न ही शिथिलता की भर्ती। अपितु वर्तमान गर्भित अत्यल्प है।

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